वांछित मन्त्र चुनें

तव॒ द्यौरि॑न्द्र॒ पौंस्यं॑ पृथि॒वी व॑र्धति॒ श्रव॑: । त्वामाप॒: पर्व॑तासश्च हिन्विरे ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tava dyaur indra pauṁsyam pṛthivī vardhati śravaḥ | tvām āpaḥ parvatāsaś ca hinvire ||

पद पाठ

तव॑ । द्यौः । इ॒न्द्र॒ । पौंस्य॑म् । पृ॒थि॒वी । व॒र्ध॒ति॒ । श्रवः॑ । त्वाम् । आपः॑ । पर्व॑तासः । च॒ । हि॒न्वि॒रे॒ ॥ ८.१५.८

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:15» मन्त्र:8 | अष्टक:6» अध्याय:1» वर्ग:18» मन्त्र:3 | मण्डल:8» अनुवाक:3» मन्त्र:8


बार पढ़ा गया

शिव शंकर शर्मा

इन्द्र की महिमा दिखलाते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्र) हे ऐश्वर्य्यशाली परमात्मन् ! (तव) तेरे (पौंस्यम्) पुरुषार्थ को (द्यौः) द्युलोक=सूर्य्यलोक (वर्धति) बढ़ाता है। (पृथिवी) यह दृश्यमान हमारी पृथिवी तेरे (श्रवः) यश को (वर्धति) बढ़ाती है, (आपः) अन्तरिक्षलोक मेघादिस्थान (च) और (पर्वतासः) स्वयं मेघ भी (त्वाम्) तुझको (हिन्विरे) प्रसन्न करते हैं ॥८॥
भावार्थभाषाः - सूर्य्यादि सब ही पदार्थ उसकी महिमा को दिखला रहे हैं ॥८॥
बार पढ़ा गया

आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्र) हे परमात्मन् ! (द्यौः, तव, पौंस्यम्) द्युलोक आपके प्रयत्न को (पृथिवी, श्रवः) पृथिवी यश को (वर्धति) प्रकाशित करते हैं (आपः) जल (पर्वतासः, च) और पर्वत अथवा मेघ (त्वाम्) आपका आश्रय पाकर (हिन्विरे) लोकों को तृप्त करते हैं ॥८॥
भावार्थभाषाः - हे सम्पूर्ण ऐश्वर्यों के स्वामी परमेश्वर ! यह द्युलोक तथा पृथिवीलोक आपके कर्तृत्व=क्रिया, बल तथा यश को भले प्रकार प्रकट कर रहे हैं और आपके आश्रित मेघ=वृष्टि पृथिवी को प्राप्त होकर सबकी रक्षा करती है अर्थात् अन्नादि की उत्पत्ति द्वारा प्राणीमात्र तृप्त होते हैं, यह सब पदार्थ आपकी महत्ता प्रकट कर रहे हैं ॥८॥
बार पढ़ा गया

शिव शंकर शर्मा

इन्द्रमहिमा प्रदर्श्यते।

पदार्थान्वयभाषाः - हे इन्द्र ! तव+पौंस्यम्=पुरुषार्थं सृष्टिरचनां प्रति। द्यौः=सूर्य्यलोकः। वर्धति=वर्धयति=दर्शयति। इयं दृश्यमाना अस्मदीया पृथिवी। तव। श्रवः=यशः। वर्धति। त्वाम्। आपः=अन्तरिक्षाणि मेघलोकाः। पुनः। पर्वतासः=पर्वता मेघाः स्वयमपि। हिन्विरे=प्रीणयन्ति=प्रसादयन्ति ॥८॥
बार पढ़ा गया

आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्र) हे परमात्मन् ! (द्यौः, तव, पौंस्यम्) द्युलोकस्तव प्रयत्नम् (पृथिवी, श्रवः) पृथिवी च यशः (वर्धति) प्रकाशनेन वर्धयति (आपः, पर्वतासः, च) जलानि गिरयो मेघा वा (त्वाम्, हिन्विरे) त्वामाश्रित्य लोकान् प्रीणयन्ति ॥८॥